समान नागरिक संहिता पर निबंध | Essay on Uniform Civil Code in Hindi

हेलो दोस्तों! सुप्रभात कैसे हो आप सब, आशा करती हूं सभी कुशल होंगे। आज के आर्टिकल में हम समान नागरिक संहिता पर निबंध लेकर आए हैं, यह बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है

आज के आर्टिकल में हम समान नागरिक संहिता पर निबंध जैसे महत्वपूर्ण विषय के बारे में चर्चा करेंगे, समान नागरिक संहिता अर्थात यूनिफॉर्म सिविल कोड ।

समान नागरिक संहिता पर निबंध
समान नागरिक संहिता पर निबंध

समान नागरिक संहिता पर निबंध 1

प्रस्तावना:-

आजकल यह एक मुद्दा बनकर सामने आ रहा है, समान नागरिक संहिता देश के विभिन्न भागों में चर्चा का विषय बना हुआ है। समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड का अर्थ होता है,भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून का होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का हो, भारतीय संविधान के भाग 4 के अनुच्छेद 44 के अनुसार भारत के समस्त नागरिकों के लिए एक समान नियम एवं कानून होने चाहिए।

समान नागरिक संहिता का अर्थ एक धर्मनिरपेक्ष कानून भी होता है, जो सभी धर्म के लोगों के लिए समान रूप से लागू होता है। अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग सिविल कानून ना होना ही समान नागरिक संहिता की मूल भावना है, फिर चाहे वह किसी भी धर्म या जाति से ताल्लुक क्यों ना रखता हो।

आज सभी धर्म के लोगों के लिए अलग-अलग पर्सनल कानून है, भारत में अधिकतर व्यक्तिगत कानून धर्म के आधार पर बनाए गए हैं। हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध धर्म के व्यक्तिगत कानून हिंदू विधि से संचालित किए जाते हैं।

मुस्लिम तथा ईसाई धर्म के अपने अलग व्यक्तिगत कानून है, मुस्लिमों का कानून शरीयत पर आधारित है जबकि अन्य धार्मिक समुदायों के व्यक्तिगत कानून भारतीय संसद द्वारा बनाए गए कानून पर आधारित है।

इन कानूनों को सार्वजनिक कानून के नाम से जाना जाता है और इसके अंतर्गत विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, गोद लेने और संरक्षण जैसे विषयों से संबंधित कानूनों को शामिल किया गया है।

समान नागरिक संहिता की आवश्यकता :-

आजादी के बाद भी रियल स्टेट तलाक हो या शादी से जुड़े कानून एक समान नहीं है, हमारे देश में आज भी अलग जाति और धर्म के नाम पर दंगे होते हैं। इस कारण समान नागरिक संहिता की आवश्यकता समय की आवश्यकता बन गई है, ट्रिपल तलाक और व्यभिचार एक समान नागरिक संहिता की आवश्यकता की मांग करता है।

सभी विभिन्न प्रकार के लिंग और धर्म के भारतीय नागरिकों को समान दर्जा प्रदान करना, पूरे देश का एकीकरण और व्यक्तिगत कानूनों के मामले में धार्मिक पूर्वाग्रह का उन्मूलन तथा व्यक्तिगत कारणों से संबंधित उन्मूलन मुद्दे पर परिवर्तन आदि सभी समान नागरिक संहिता की आवश्यकता है।

समान नागरिक संहिता की उत्पत्ति:-

समान नागरिक संहिता (UCC) की उत्पत्ति औपनिवेशक भारत में तब हुई जब ब्रिटिश सरकार ने 1836 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें अपराधों, सबूतों और अनुबंधों से संबंधित भारतीय कानून के संहिता करण में सिफारिश की गई।

ब्रिटिश शासन के अंत में व्यक्तिगत मुद्दों से निपटने वाले कानूनों में वृद्धि ने सरकार को 1941 में हिंदू कानून समिति का कार्य सामान्य हिंदू कानून की आवश्यकता के प्रश्न की जांच करना था। समिति ने शास्त्रों के अनुसार एक संहिताबद्ध हिंदू कानून की सिफारिश की जो महिलाओं को समान अधिकार देगा।

1937 को अधिनियम की समीक्षा की गई और समिति ने हिंदुओं के लिए विवाह और उत्तराधिकार की नागरिक संहिता का सिफारिश किया।

समान नागरिक संहिता:-

यूसीसी का उद्देश्य महिलाओं और धार्मिक अल्पसंख्यको सहित कमजोर वर्गों को सुरक्षा प्रदान करना है, साथ ही एकता के माध्यम से राष्ट्रवादी विचार को बढ़ावा देना है।

यह कोड उन कानूनों को सरल बनाने का काम करेगा जो वर्तमान में धार्मिक मान्यताओं जैसे हिंदू कोड बिल, शरीयत कानून और अन्य के आधार पर अलग-अलग है, यह संहिता विवाह समारोह, विरासत, उत्तराधिकार, गोद लेने जैसे जटिल कानूनों को सभी के लिए एक समान बनाता है।

उपसंहार:-

यूनिफॉर्म सिविल कोड भारत में सभी के लिए एक समान नियम लेकर प्रस्तुत होगा जिससे विभिन्न संप्रदायिक मुद्दों पर भी परिवर्तन करना संभव होगा, लेकिन इस संहिता को लेकर देशभर में कुछ संप्रदायों में विरोध हो रहा है।

यह वास्तव में भारत को एक साथ बढ़ाने के लिए सभी नागरिकों को एक नियम के साथ चलना आवश्यक है।

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समान नागरिक संहिता पर निबंध 2

प्रस्तावना:-

यूनिफॉर्म सिविल कोड अर्थात समान नागरिक संहिता के लागू होने से सभी जाति, धर्म के लोगों को समान अधिकार प्राप्त होगा, भारतीय संविधान का उद्देश्य भारत के समस्त नागरिकों के साथ धार्मिक आधार पर सभी भेदभाव को समाप्त करना है, समान नागरिक संहिता का मुद्दा किसी सामाजिक या व्यक्तिगत अधिकारों के मुद्दे से हटकर एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है।

समान नागरिक संहिता मूल रूप से भारत में सभी समुदायों और धर्मो के व्यक्तिगत कानूनों से संबंधित है। नीजि लाॅ सार्वजनिक कानूनों से अलग होते हैं,नीजि लाॅ में शादी, तलाक, गोद लेने और पालन-पोषण से जुड़े मामले शामिल होते हैं।

समान नागरिक संहिताकरण की प्रक्रिया सबसे पहले ब्रिटिश राज्य के द्वारा शुरू की गई थी। यह मुख्य रूप से हिंदू और मुस्लिम नागरिकों के लिए था, तीन तलाक और बहु विवाह जैसी प्रथाएं महिलाओं के जीवन और सम्मान के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।

यह किसी भी धर्म ,जाति के सभी नीजि कानूनों से ऊपर होता है, भारत देश में समान नागरिक संहिता सुचारु रुप से लागू होने से महिलाओं को अपने पिता की संपत्ति पर अधिकार और गोद लेने जैसे मामलों में भी एक समान नियम लागू होंगे, समान नागरिक संहिता का उद्देश्य हर धर्म के पर्सनल लॉ में एकरूपता लाना है।

समान नागरिक संहिता के लाभ:-

समान नागरिक संहिता के लागू होने से देश में लैंगिक भेदभाव को दूर करने में मदद मिलेगा, तथा समान नागरिक संहिता के लागू होने से देश में रहने वाले सभी धर्म जाति के लोगों को समान अधिकार प्राप्त होगा, तथा जिस प्रकार पिता का संपत्ति बेटे को मिलता है ।

उसी प्रकार महिलाओं को भी पैतृक संपत्ति का अधिकार प्राप्त होगा, यूसीसी के गठन से राष्ट्रीय अखंडता को बढ़ावा मिलेगा, हमारा भारत देश संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष राज्य है।

समान नागरिक संहिता के नुकसान:-

नागरिक संहिता के संबंध में संभावित गलतफहमी ने विभिन्न धर्म में विशेषकर अल्पसंख्यकों में भय पैदा कर दिया है, कई धर्मों में यह देखा जा रहा है कि यूसीसी का उद्देश्य उनके धार्मिक रीति-रिवाजों और मूल्यों के खिलाफ है। ऐसे में यह देश के सांप्रदायिक भावना को नष्ट कर सकता है।

देशभर में मुस्लिम समुदाय समान नागरिक संहिता को लागू करने का विरोध कर रहा है , हमारे राष्ट्र की व्यापक विविधता के कारण समान नागरिक संहिता का कार्यान्वयन एक बेहद कठिन कार्य है। एक ओर जहां देश की बहुसंख्यक आबादी समान नागरिक संहिता को लागू करने की मांग कर रही हैं, वही अल्पसंख्यक वर्ग इसका विरोध कर रहा है।

उपसंहार:-

समान नागरिक संहिता में देश के प्रत्येक नागरिक के लिए एक समान कानून होता है, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का हो, समान नागरिक संहिता में शादी ,तलाक तथा जमीन जायदाद आदि के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होता है।

हमारे देश में कई धर्म के लोग विवाह, संपत्ति और गोद लेने आदि में अपने पर्सनल Law का पालन करते हैं। मुस्लिम ,ईसाई और पारसी समुदाय का अपना-अपना पर्सनल लॉ है जबकि हिंदू सिविल लॉ के तहत हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध आते हैं।

एक समान नागरिक संहिता का अर्थ समाज के सभी वर्गों को उनके धर्म के राष्ट्रीय नागरिक संहिता के अनुसार समान रूप से माना जाएगा, जो सभी धर्म समुदाय के लोगों पर समान रूप से लागू होगा।

निष्कर्ष –

आशा करते हैं दोस्तों आप सभी को हमारा यह पोस्ट पसंद आएगा, यह आर्टिकल आप सभी के लिए बहुत ही उपयोगी साबित होगा, इसी तरह विभिन्न प्रकार के विषयों के निबंध लेखन के बारे में जानने के लिए आप सभी हमारे साथ बने रहे।

हमारा निबंध लेखन बहुत ही सरल भाषा में लिखा होता है जिससे आप सभी के लिए निबंध लेखन को समझना बहुत आसान होगा, जिसे पढ़कर आप सभी आसानी से निबंध लिख सकेंगे तथा जानकारियां भी प्राप्त कर सकेंगे।

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