स्वागत है दोस्तों आपका अपने वेबसाइट में, आज के आर्टिकल में हम परोपकार पर निबंध लेकर आए हैं, परोपकार एक ऐसी भावना होती है जो हर किसी के अंदर होना चाहिए, जब किसी व्यक्ति के अंदर यह भावना होता है तो उसे परोपकारी व्यक्ति कहा जाता है।
आपने अक्सर देखा होगा स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थियों को परीक्षा में परोपकार पर निबंध लिखने को दिया जाता है, सभी विद्यार्थियों तथा लोगों को परोपकार के बारे में पता होना चाहिए क्योंकि परोपकार का भावना सभी के गुणों में होना आवश्यक है इससे व्यक्ति परोपकारी बनता है, परोपकारी व्यक्ति या विद्यार्थी सभी के दिलों में अपना अलग स्थान बना सकते हैं।
हमारे आज के आर्टिकल परोपकार पर निबंध के माध्यम से आप सभी विद्यार्थी परोपकार पर निबंध लिख सकते हैं तथा परोपकार पर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन में परोपकार के गुणों को अपना सकते हैं। तो चलिए शुरू करते हैं.

परोपकार पर निबंध 1
प्रस्तावना:-
परोपकार का अर्थ दूसरों पर उपकार अर्थात दूसरों के प्रति किया गया कार्य होता है, हम सभी के लिए जीवन में परोपकार का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान होता है, हम सभी को ऐसा कार्य करना चाहिए जिससे किसी का भला हो सके, यह एक ऐसी भावना होती है जिसे प्रत्येक व्यक्ति को अपने अंदर रखना चाहिए।
परोपकार करना मनुष्य का परम धर्म होता है, प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में परोपकारी होना चाहिए, मानवता के कल्याण हेतु सभी को परोपकारी होना आवश्यक होता है। परोपकार हमारे जीवन में बहुत महत्व रखता है इससे हम दूसरों की निस्वार्थ भाव से सेवा करने में मदद करते हैं।
परोपकार के महत्व:-
हम सभी के जीवन में परोपकार का बहुत महत्व होता है, जो हमारा सबसे बड़ा धर्म होता है इससे बड़ा कोई धर्म नहीं होता, परोपकार एक उत्तम आदर्श का प्रतीक होता है जो सभी के लिए आवश्यक और महत्वपूर्ण होता है। हम सभी व्यक्ति परोपकार की भावना से समाज के सभी जीवो के हित में कार्य कर सकते हैं।
हम सभी परोपकार के मार्ग पर चलकर अपने जीवन को सफल बना सकते हैं, परोपकार की शिक्षा हमें प्रकृति से मिलती है, प्रकृति के सभी कार्य में हमेशा परोपकार की भावना दिखाई पड़ती है, हम सभी को परोपकार की भावना से दूसरों की मदद के लिए अग्रसर होना चाहिए। परोपकार से हमारे आत्मा को मानसिक रूप से शांति मिलती है तथा इससे स्नेह, सहानुभूति आदि विभिन्न गुणों से हम सभी मानव का जीवन सुखमय होता है।
परोपकार से लाभ:-
परोपकार की भावना मानव के हृदय में आनंद, शांति तथा सुख का अनुभव कराता है, इससे हम सभी में उदारता की भावना उत्पन्न होती है, परोपकारियों में किसी भी प्रकार की द्वेष, तथा ईर्ष्या की भावना नहीं होती है, परोपकारी व्यक्ति खुद की चिंता ना करते हुए दूसरों की भलाई के लिए हमेशा उनका मदद करते हैं, परोपकार के हृदय में कटुता की भावना नहीं होती है।
परोपकार का अर्थ:-
परोपकार दो शब्दों से मिलकर बना होता है, पर+उपकार अर्थात दूसरों का अच्छा करना और दूसरों के प्रति सहानुभूति की भावना रखना, तथा जरूरतमंद व्यक्ति की सहायता करना ही परोपकार कहलाता है। परोपकार की भावना ही हम मनुष्यों को पशुओं से अलग करती हैं, जबकि भोजन और नींद तो पशुओं में भी मनुष्य के समान ही पाई जाती हैं। सच्चा परोपकारी व्यक्ति वही होता है जो प्रतिफल की भावना न रखते हुए दूसरों की मदद करता है।
मनुष्य होने के नाते हम सभी का नैतिक कर्तव्य होता है कि हम सभी को अपने मनुष्यता का परिचय देते हुए समाज में परोपकार की भावना को अपनाना चाहिए तथा दूसरों की मदद करना चाहिए, यह एक ऐसा भावना होता है जिसके द्वारा हम शत्रु को भी मित्र बना सकते हैं, अर्थात किसी शत्रु पर विपत्ति आने पर उपकार किया जाए तो वह सच्चा मित्र बन जाता है।
परोपकारी व्यक्ति का स्वभाव:-
परोपकारी मनुष्य का स्वभाव उत्तम प्रकृति का होता है, परोपकारी व्यक्ति को दूसरों को सुख देकर आनंद महसूस होता है, परोपकारी व्यक्ति हमेशा जरूरतमंदों को सहानुभूति प्रदान करता है, परोपकार करने से सम्मान प्राप्त होता है, परोपकार व्यक्ति निस्वार्थ भाव से दूसरों के हित के लिए कार्य करता है, और दूसरों की खुशी में ही खुश होता है।
प्रकृति और परोपकार:-
प्रकृति का यदि सूक्ष्म निरीक्षण किया जाए तो यह दृष्टिगोचर होता है कि परोपकार का समस्त गुण प्रकृति पर ही निहित होता हैं, प्रकृति हमें निस्वार्थ भाव से जल, वायु, आदि विभिन्न प्रकार से हम मनुष्यों के जरूरत को पूरा करती है। प्रकृति के द्वाराही नदिया एक स्थान से दूसरे स्थान पर सतत प्रवाहित होती रहती हैं, सूर्य जीवनदाता है इसकी किरणें हमें ऊर्जा स्फूर्ति प्रदान करती है। पृथ्वी में समाहित सभी गुण मनुष्य के लिए परोपकार से ही उत्पन्न होता है।
परोपकार और मानव:-
मनुष्य और पशु पक्षी अपने दैनिक जीवन के कार्यों को करने के लिए आगे बढ़ते रहते हैं, किंतु पशु में परोपकार की भावना नहीं होती है, परोपकार को सभी धर्मों में बड़ा धर्म माना जाता है, क्योंकि परोपकार से ही दया, दान, उदारता एवं संयम आदि नैतिक गुणों का विकास होता है। परोपकार की भावना उसी व्यक्ति में होती है जिसका मन निर्मल और निस्वार्थ त्याग का होता है।
परोपकार करने के लिए मानव में सहिष्णुता का गुण होना आवश्यक होता है, परोपकार के लिए मानव को कभी-कभी तकलीफ तथा स्वाभिमान का त्याग भी करना पड़ता है।
उपसंहार:-
परोपकारी व्यक्ति किसी भी बदले की भावना अथवा फल प्राप्ति की आकांक्षा से निस्वार्थ रहता है, अर्थात परोपकारी व्यक्ति दूसरों के हित के लिए भलाई का कार्य करता है बिना किसी फल प्राप्ति के भावना से, परोपकार सहानुभूति का प्रतीक है यह हम सभी मनुष्यों के अंदर होनी चाहिए।
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परोपकार पर निबंध 2
प्रस्तावना:-
किसी व्यक्ति की सेवा या उसे किसी भी प्रकार के मदद पहुंचाने की क्रिया को परोपकार कहते हैं, परोपकार सभी के जीवन का महत्वपूर्ण उद्देश्य होता है, परोपकार मानव का दूसरा नाम होता है, हम सभी को अपने जीवन में परोपकार को शामिल करना चाहिए। परोपकार हम सभी के जीवन में अपने आप से आता हैं।
परोपकार का अर्थ दूसरों का भला करना और दूसरों की सहायता करना होता है, परोपकार व्यक्ति निस्वार्थ रूप से दूसरे लोगों की सेवा अथवा सहायता करता है, परोपकार समाज में प्रेम भाव तथा भाईचारे का संदेश फैलाता है। जीवन के विकास के लिए परोपकार का होना सर्वश्रेष्ठ होता है यह सबसे बड़ा धर्म होता है क्योंकि परोपकार के गुण के कारण ही मानव एक दूसरे के करीब आता है और अपनी मनुष्यता की पहचान कराता है।
परोपकार कैसे:-
हम सभी कई प्रकार से दूसरों का उपकार कर सकते हैं, बूढ़ों को सड़क पार कराने में मदद करना, जरूरतमंद लोगों के काम करना, रोगियों को अस्पताल पहुंचाना, भूखे को खाना खिलाना, प्यासे को पानी पिलाना, आदि सभी कार्य करके परोपकार कर सकते हैं।
मृत्यु के बाद परोपकार:-
आज विज्ञान की तकनीकी ने इतनी उन्नति कर ली है कि, किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर उसके आंतरिक अंगों को लगाकर किसी दूसरे व्यक्ति की जिंदगी को आसान बनाया जा सकता है, दुर्घटना के कारण कुछ लोगों का दिमाग काम करना बंद कर देता है, कुछ लोगों की आंखें दिखाई नहीं देती है तो मृत व्यक्ति के आंखों के द्वारा दूसरे व्यक्ति के आंखों को सही किया जा सकता है यह भी परोपकार होता है।
उपसंहार:-
वर्तमान युग में मनुष्य अत्यधिक लोभी और स्वार्थी हो गया है, बिना परोपकार के मानव जीवन को व्यतीत तो किया जा सकता है परंतु मानव का जीवन तभी सार्थक हो सकता है जब वह परोपकार को अपने अंदर समाहित करता है, परोपकार करने से आत्मिक तथा मानसिक शांति की प्राप्ति होती है और दूसरों की मदद भी हो जाती है। हम सभीके मानव जीवन का उद्देश्य यही होना चाहिए कि वह अपने कल्याण के साथ-साथ दूसरों के कल्याण के लिए भी सोचे।
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